जिंदगी मौत के आँगन मे

जिंदगी मौत के आँगन मे, ताण्डव कर के आई है

उसे उसकी ही मिट्टी मे, दफ़न भी कर के आई है

किसी भी रोग के भय से, गर जो डर गए हम सब

लड़ने के ही पहले तो, जड़ से मर गए हम सब

हमे हर एक कोरोना से, लड़ना जारी रखना है

विजित होकर के ही संभवित, समग्र पहचान पाना है

सृष्टि की परीक्षा मे, परीक्षा रोज आना है

इसे अवसर समझ कर के, इसी को पार पाना है।

नवनिश्चयवाद अपनाकर, विजय के पथ पर जाना है

विषाणु के ही विष से तो हमे अमृत बनाना है

न बाबाओ की बूटी से, न हकीमो की ही युक्ति से

हमे तो मिल गया सब कुछ, अपनी ही ईक्षाशक्ति से।

मिला जो वक़्त अब तक हमको, उसे सब मिल के बांटेंगे

दुआ ओर प्रार्थना की इस घड़ी मे, मिल के गाएँगे

घरो मे बंद होकर के, लगता है हार गए हैं हम

आज जो हार कर के भी, तुझे हम कल हरएंगे।

धरा पर तेरी दस्तक से अंखे खोल ली हमने

अलौकिक ज्ञान और विज्ञान के अवसर खोल दी तुमने

हमारे अथक प्रयासो से, अनुसंधान होगा जब

तेरी हर एक प्रजाति को, हम सब हरयंगे।

द्वारा,

डॉ. कृष्ण कुमार सिंह

गोमती नगर, लखनऊसर्वाधिकार सुरक्षित

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