स्वर्गीय अमर श्री लाल बहादुर शास्त्री जी के 115वे जन्म दिवस के अवसर पर उन्हे समर्पित स्वरचित कविता
धन्य भाग्य वो भारत भूमि जिसने दिये एक लाल देश को
संघर्षो की अग्नि मे तप के पले बढ़े वे लाल देश के
आज़ादी के स्वप्न सुधा मे बढ़े चले वे सतत निरंतर
गिरफ़्तार हो कर के भी, अडिग रहे नवचल पथ पर।
धन्य भाग्य वो के भारत भूमि जिसने दिये एक लाल देश को
कर्मयोग और सुचिता के नव प्रतीक थे लाल देश के
सच्चाई और सादगी के जीवंत गीत थे लाल देश के
करते थे उपवास रात मे कहते थे भूखा है भारत
खुद से वे करते थे खेती लक्ष्य था आत्मनिर्भर भारत
धन्य भाग्य वो के भारत भूमि जिसने दिये एक लाल देश को
रेल दुर्घटना के होने पर दिया इस्तीफ़ा मंत्री पद से
कच्छ की गीली धरती को बदल दिया संकल्प शक्ति से
हरित क्रांति को जन्म दिया शत्रु देश को धूल छटा दी
जय जवान जय जय किसान कह अमर रहे वे लाल देश के।
डॉ. कृष्ण कुमार सिंह
गोमती नगर, लखनऊ