शरदकालीन अवकाश 2018 के दौरान सिवनी मालवा का यात्रा संस्मरण
यह लेख मेरे अभी तक के सर्वप्रिय लेखो मे एक है। ज्ञातव्य हो कि मैंने सितंबर 2007 मे केन्द्रीय विद्यालय सिवनी मालवा (मध्य प्रदेश) मे प्रशिक्षित स्नातक शिक्षक(सामाजिक विज्ञान) के रूप मे नियुक्ति पाई थी। इसके पूर्व वर्ष 2006 मे मैंने जवाहर नवोदय विद्यालय बांकुड़ा (पश्चिम बंगाल) मे उपरोक्त पद पर नौकरी पाई थी। 2007-12 के सिवनी मालवा मे कार्य करने के दौरान वहाँ के विद्यार्थियों, अभिभावकगण एवं सहकर्मियों से स्थापित अंतरंग संबंधो को मैं जीवन भर भूल नहीं सकता। हुआ यूं कि एक दिन देश के प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेंद्र मोदी जी ने एक वाक्य बोली थी, “ आप जहां भी अपनी प्रथम नियुक्ति पाते हैं वहाँ कुछ दिन घूमने के लिए अवश्य जाएँ। साथ मे सिवनी मालवा मेरे लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि वहाँ मैं केन्द्रीय विद्यालय सिवनी मालवा मे नियुक्त प्रशिक्षित स्नातक शिक्षिका (अँग्रेजी) शुश्री श्वेता मिश्रा से मिल सका एवं उन्हे अपनी जीवन संगिनी बना सका। साथ ही वहाँ नियुक्त मो. तकी नियाजी (पुस्तकालयाध्यक्ष) जो मेरे रूम पार्टनर थे जैसे घनिष्ठ मित्र का भी साथ मिला।
अब आता हूँ मुख्य विषय पर। अक्टूबर 2018 मे यात्रा के दौरान सबसे पहले एक दिन मै भोपाल रूका। जहाँ मेरी प्रिय शिष्या सह मुहबोली बहन अंकिता रघुवंशी एवं शिष्य डॉ सचिन रघुवंशी मिले जिनके साथ सपरिवार हमने रात्री भोजन लिया। भोपाल से अगले तीन दिन प्रवास के लिए मै सपरिवार सिवनी मालवा कि ओर निकाल पड़ा। साथ मे शिष्या तनु दुबे भी थी जो भोपाल मे सिविल सर्विसेज कि तैयारी कर रही हैं। सिवनी मालवा पहुँचने के बाद सबसे पहले तनु को घर छोड़ा एवं लौटते हुए अपने पूर्व विद्यलय पहुंचा जहाँ घुसते ही आंखो से आंशू निकाल पड़े जहा पाँच वर्ष बिताने के बाद मैं छह वर्ष के बाद जा रहा था। विद्यालय मे शरदकालीन छुट्टियाँ चल रही थी जहाँ दसवीं एवं बारहवीं के विद्यार्थियों के लिए एक्सट्रा क्लाससेज। वहाँ के तात्कालिक प्राचार्य ने हमलोगो का जबर्दस्त स्वागत किया। साथ ही वहाँ कार्यरत पी. एस. ठाकुर सर एवं मुकेश लोवंशी सर ने पूरे विद्यालय घुमवाए जिससे मै पुराने दिनो मे खो गया। वहाँ शिष्य मानक अग्रवाल के होटल मे ठहरा, जिसके ठीक बगल मे उसका पेट्रोल पम्प भी था। दोपहर का खाना मानक के घर खाया। हम लोगो के सिवनी पहुँचने की खबर वहाँ आग कि तरह फैल गई। जिन विद्यार्थियो को 2007-12 तक पाँच साल पढ़ाया था वे 2018 मे काफी बड़े, समझदार ओर उनमे से कई घर कि जिम्मेवारियों को संभालने वाले हो चुके थे। होटल के जिस कमरे मे मैं ठहरा था वहाँ लगभग 20-25 विद्यार्थियों का जमावड़ा लग गया एवं ठहाको का अंतहीन दौर चल पड़ा जिसमे सब बचपन के दिनो को याद कर के हंस रहे थे। इन विद्यार्थियों मे रोहित लोवंशी, राहुल रघुवंशी, रोहित रघुवंशी, देवेंद्र राजपूत, मोहित, वरुण रघुवंशी, पीयूष पुरोहित अतुल रगुवंशी, क्षितिज साध, जयेश जैन, मानक अग्रवाल ओर जाने कितने विद्यार्थी शामिल थे। रात के खाने का निमंत्रण तनु दुबे के घर मे था। वहाँ उनकी माता जी ने इतने व्यंजन बना रखे थे की खाते खाते मन भर गया। जिस प्रेम एवं व्यवहार से वह मुझे जो अपनापन मिला मै कभी भी उसे भूल नहीं सकता हूँ। तनु दुबे के पिताजी माननीय दुबे जी एवं भाई यश दुबे का मै उल्लेख जरूर करना चाहूँगा जो 11 बजे रात मे हमलोगो को होटल छोड़ने आए। जान कर काफी खुशी हुई की यश अपनी मेहनत के बदौलत कम संसाधनो की सहता से यूट्यूब की ब्लॉगिंग करते हुए सेलिब्रिटी ब्लॉगर बन चुका है।
रोहित लोवंशी जो अब वहाँ के प्रसिद्ध अखबार के संवाददाता बन चुके थे, के द्वारा विशेष आवभगत की गई। खास कर के सुबह 6 बजे घर से चाय बनवा कर हमलोगो तक पहुचाना, फूल की माला से स्वागत करना एवं सभी यादगार क्षणो का एलबम बना उसे प्रदान करना और अगले दिन समाचार पत्र मे ये न्यूज़ प्रकाशित करना जैसे दो शिक्षक नहीं बल्कि कोई सेलब्रिटी का आगमन हुआ था, वास्तव मे किसी सपने से कम नहीं था। अखबार मे अपने व्यस्ततम कार्यक्रम के बावजूद वह पूरे समय हमलोगो के साथ रहा।
अगले दिन सुबह अतुल रघुवंशी जिसे मैंने सातवी से लेकर दसवीं तक पढ़ाया था, उसके घर सुबह का चाय नास्ता किया। अतुल अब एक से तो आर्थात विवाहित हो चुके थे एवं उनकी पत्नी उनसे भी लंबी एवं आदर्श महिला थीं जिनके आने से अतुल के जीवन मे कई सकारात्मक परिवर्तन आए। अतुल अब वह के सफलतम बिजनेस मैन हैं एवं बीज, रसायन कीटनाशको कि दुकान चला रहे हैं। अतुल का विशेष उल्लेख करना इसलिए जरूरी है कि उसके परीक्षा परिणामो को देख कर ज़्यादातर शिक्षक कहते थे कि यह कुछ नहीं करेगा। लेकिन उनकी भविष्यवाणी के उलट आज वह सफल व्यक्ति है। अतुल के ही घर मै ओर मेरे रूम पार्टनर नियाजी सर भी लगभग ढाई वश तक किराए पर थे। जहाँ मै चुप चाप उन एक एक जगह को टकटकी लगाए देखता जा रहा था। वहाँ से अतुल ने अपनी कार से हमलोगो को नुपूर खत्री के घर छोड़ा जहाँ करीब दो तीन घंटे तक हम सभी एक साथ बैठ ओर बाते किए। नूपुर अब विवाहित हो चुकी थी। दो जुड़वा बच्चे भी थे। खास कर के मेरे द्वारा पढ़ाये बच्चो मे दसवीं के प्रथम बैच की छात्रा थीं। उनके पिताजी श्री सुशील खत्री एक जाने माने वकील थे एवं हम सभी कार्यरत केन्द्रीय विद्यालय के शिक्षक शिक्षिकाओं के इनकम टैक्स रिटर्न बिना फी लिए भर देते थे। वहाँ से लौट कर ओम रघुवंशी भैया के घर गए जहाँ मेरी पत्नी 2008-09 तक शादी के पूर्व किराए पर घर के सदस्य की तरह रहती थीं।
वहाँ से लौट कर होटल पहुंचे जहाँ दोपहर का खाना शिष्य आदित्य चौधरी के घर पर था। आदित्य आई. आई. दिल्ली से इंजीनरिंग की पढ़ाई पूरी कर एक प्रतिष्ठित संस्थान मे कार्यरत हैं। आश्चर्यजनक बात यह थी की आदित्य के पिताजी भी अपने समय के मेघावी छात्र थे तथा इंजीनरिंग करने के बाद भी उन्होने नौकरी के बजाए कृषि क्षेत्र को प्राथमिकता दी जो आज भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। आदित्य की माता जी एक कुशल गृहणी हैं जिन्होने अपने मेहनत के बल पर घर के सामने खाली पड़ी जमीन मे जैवीक खेती को बखूबी अंजाम दिया है। जो खाना बना था उसमे कम से कम दस प्रकार के व्यंजन जिसमे मूंग का हलवा, भजिया, मंगोरे तथा रबरी शामिल थे। आदित्य की दादी जी मुझे सबसे स्मार्ट लगी जो लगभग 80 वर्ष से ज्यादा की होंगी जिन्होने हमे सपरिवार आगे बढ्ने के खूब सारे आशीर्वाद दिये। उसी दिन लगभग 3 बजे सभी विद्यार्थियों को मैंने रेस्टोरेन्ट मे दोपहर के खाने के लिए आमंत्रण दिया था। कम से कम 20 विद्यार्थी उस लंच मे शामिल थे। परंतु जब मैंने रेस्टोरेन्ट के मालिक से बिल पूछा की कितना हुआ तो मालिक ने कहा की साहब पेमेंट हो चुका है। मेरी एक न चली और किसी ने षड्यंत्र के तहत बिल का पेमेंट कर दिया था। इतनी जल्दबाज़ी मे मै कई परिचितों से नहीं मिल पाया जिसका मुझे अफसोस है जिसमे शिष्या अनुरिता मोदी की माता जी, डॉ. अजय रघुवंशी, डॉ. श्रीमती कांति भास्कर एवं अन्य कई लोग शामिल थे।
रात मे मेरी ट्रेन इटारसी से लखनऊ को थी। जब मैंने होटल छोडते समय मानक को कमरे का बिल पेमेंट करना चाहा तो उसने कहा की सर आप कैसी बात कर रहे हैं यह कह कर? फिर मै इसके आगे कुछ भी बोल न सका। इटारसी की दूरी सिवनी से लगभग 50 किलोमीटर है। इतने मे शिष्य राजन पटेल क्षितिज साध के साथ अपनी लग्जरी कर लेकर आ गए और वह से इटारसी रेलवे स्टेशन तक ट्रेन मे बैठाया।
वास्तव मे सिवनी मालवा के लोगो से मुझे जो प्यार, स्नेह और आशीर्वाद मिला उसके अल्पांश का भी बदला मै नहीं चुका सकता। सतपुड़ा के सुंदर आवरण के किनारे प्राकृतिक सौन्दर्य को समेटे हुए यह सुरम्य स्थल मेरे लिए किसी तीर्थ स्थल से कम नहीं हैं। जो चीज कई दिनो से मेरे दिल मे थी आज मैं उसे पन्ने पर उकेर रहा हूँ।
धन्यवाद आप सभी को
कृष्ण कुमार सिंह
प्रशिक्षित स्नातक शिक्षक (सामाजिक विज्ञान)
लखनऊ