नदी की भागीरथी धारा से सिंचित जिसकी धड़कन हो
समस्त देवत्व से अभिभूत शोभित जिसकी कण-कण हो
सौंदर्य की अद्भुत छटा से युक्त अपना देश
जिसकी धमनियों में गंगा और यमुना ही बहती हो। 2
मुकुट मस्तक भी जिसकी प्रज्वलित हिम से दमकती हो जिसकी माथे की बिंदी भीहिं दी से चमकती हो
जिसकी पाव में हिंदी अपना सर नवाती हो
जिसकी तट की रेखा भी समंदर से सुसज्जित हो
स्वर्ण हीरे से पूरित श्यामला जब जगमगाती हो
हरित माटी से सज्जित यह धरा जब लहलहाती हो
नदी की सौम्य धारा से तरंगित जिसका अंतर्मन
जहां खुशियों की होली और दीवाली रोज होती है।
– डॉ. कृष्ण कुमार सिंह