भारत माता की छाती जोर जोर से चीत्कार उठी

आतंकियों के दुस्साहस से जब लाल किले की प्राचीर टूटी

इसी दिन की खातिर क्या हमने सत्ता सौंपी थी

नृशंस बर्बरता के आगे क्यों साधी सबने चुप्पी थी।

इस बार हमको मिला सिला अपने घर के चंद गुंडों से

लहूलुहान हुआ लाल किला अपने ही प्रपंचों से

कैपिटोल की बर्बरता देखी हमने दिल्ली की सड़को पर

दिनकर भी अब रोया होगा भारत मा के रोने पर।

दिल्ली के सड़को पर शमशान दिख रहे थे

क्योंकि किसान के वेश में हैवान दिख रहे थे।

खुले यदि हाथ जो होते वीर जवान सपूतों के

ऐसा नंगा नाच ना होता दो कौड़ी के इन टुच्चो के।

क्या इसी आज़ादी के लिए संविधान ने  अधिकार दिए थे

आतंकी हाथो से लहराने को तलवार दिए थे।

सत्ता को क्यों परवाह रहा तुच्छ चंद वोटो की

नहीं करेंगे सौदा इससे भारत मां की चोटो की।

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