रतनपुर नाम के राज्य में रतनसिंह नाम के राजा राज्य करते थे उनकी पत्नी का नाम यशोमति था। रानी को सजने सवरने का बड़ा शौक था एवं राज्य के आंतरिक मामलों में तथा राजा के फैसले में वह बराबर दखल दिया करती थी। प्रजा के हित के कार्यों से वह बराबर दूर रहती थी। रानी यशोमति को पशु पक्षियों से बहुत प्यार था। इसलिए उनके रहने के लिए उन्होंने राजमहल में विशेष व्यवस्था की थी। पशु पक्षियों की सुध लेने के लिए वह एक दिन घूमने निकली और सबसे पहले पहुंची मोर के पास। उन्होंने उससे पूछा कि बताओ तुम्हें मुझ में क्या अच्छा लगता है? मोर तो वैसे भी सुंदरता का प्रतीक सो उसने तपाक से बोल दिया कि महारानी आपके जैसा सुंदर इस दुनिया में कोई नहीं। महारानी की खुशी का ठिकाना ना था। अब वह पहुंची चतुर सियार या लोमड़ी के पास। लोमड़ी तो वैसे ही चतुर। अतः उसने सोचा कि रानी की बुराई करेंगे तो कल से खाने को भी लाले पड़ जाएंगे। अतः उसने भी यही कहा कि आप तो दुनिया की सबसे खूबसूरत महिला हैं। रानी पहुंची घोड़े के पास जो वैसे भी थोड़ा सीधा प्राणी माना जाता है। उसने हीनहीना कर रानी को दुनिया की सबसे खूबसूरत महिला बताया। अब बारी थी शेर की अतः रानी सोची यह तो जंगल का राजा है चलो इस से भी पूछ लेते हैं। शेर अक्खड़ स्वभाव का सच बोलने वाला प्राणी था सो उसने कह दिया कि महारानी आप की वास्तविक सुंदरता तो प्रजा पालन में है। ना तो आप राजा की बात सुनती हैं ना ही प्रजा की। तो मैं किस मुंह से बोलो कि आप में अच्छाइयां हैं। रानी गुस्से से भर गई एवं उसने सैनिकों से कहा कि शेर को समुद्र में फेंक दिया जाए। सेनापति एवं सैनिक शेर को समुद्र में फेंकने के बजाय जंगल में छोड़ आए, क्योंकि वह जानते थे की शेर ने प्रजा की भलाई की ही बात कही है। 2 साल के बाद राज्य में भयंकर अकाल पड़ा एवं सब कुछ तहस-नहस हो गया। यहां तक कि राजा रानी को भी खाने को लाले पड़ गए लेकिन जंगल अभी सुखा नहीं था, क्योंकि वहां खाने के लिए कंदमूल अभी बचे हुए थे। शेर जो कि अभी जंगल का राजा था उसे रतनपुर राज्य की यह हालत देखी ना गई तो उसने जंगल से खाद्य सामग्री रतन पुर नगर भिजवाया एवं रानी को यह संदेश भी भिजवाया कि यदि आपने 2 साल पहले मेरी बात मान ली होती एवं प्रजा के हितों के लिए काम किया होता तो शायद यह नौबत ना आती। रानी को अपने किए पर बहुत पछतावा हुआ एवं वह प्रजा के भलाई के कार्यों में लग गई तथा कई सार्वजनिक सुविधाओं को राज्य में शुरू करवाया। इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि, निंदक नियरे राखिए आंगन कुटी छवाय बिन पानी साबुन बिना निर्मल करे सुभाय।

द्वारा डॉक्टर कृष्ण कुमार सिंह

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