लोकतन्त्र की थाती थे, गांधी जी तो आँधी थे
जन गण मन के भाग्य विधाता, भारत माँ की लाली थे
लोकतन्त्र की थाती थे, गांधी जी तो आँधी थे।
अठारह सौ उनहत्तर मे,जनम लिया इस शूरपुत्र ने
अठारह सौ तिरानवे मे अफ्रीका को हुए रवाना
सत्याग्रह अहिंसा संग,किया प्रयोग फिर बहिष्कार का
उन्नीस सौ आठ एवं नौ मे,मिली जेल की सजा उन्हे
छूटे जेल से गए लंदन को,भारत लौटे पंद्रह मे।
यही से शुरू होती है कहानी उस शूर वीर की जिसने भारत को अंग्रेजी दासता से मुक्ति दिलाई।———–
लोकतन्त्र की थाती थे, गांधी जी तो आँधी थे
जन गण मन के भाग्य विधाता, भारत माँ की लाली थे
लोकतन्त्र की थाती थे, गांधी जी तो आँधी थे।
चंपारण के किसानो को,गांधी जी ने जीत दिलाई
अहमदाबाद के मजदूरो को शोसन से मुक्ति दिलवाई
फसल नहीं तो कर नहीं,खेड़ा का ये नारा था
जालियावाला घटना के बाद,क़ैसर ए हिन्द लौटाया था
असहयोग के सहयोग से,भारत को जिसने जोड़ा था।
लोकतन्त्र की थाती थे, गांधी जी तो आँधी थे
जन गण मन के भाग्य विधाता, भारत माँ की लाली थे
लोकतन्त्र की थाती थे, गांधी जी तो आँधी थे।
महिला उत्पीड़न,जाती व्यवस्था, छुआछूत पर प्रहार किया
सत्य अहिंसा शराबबंदी को अपना स्वीकार किया
मुट्ठी भर नमक से जिसने,ब्रिटिश राज की नीव हिलाई
चरखे के चलने से जिसने,स्वदेशी की बात बताई
सविनय अवज्ञा आंदोलन से जिसने जन जन को जोड़ा था।
लोकतन्त्र की थाती थे, गांधी जी तो आँधी थे
जन गण मन के भाग्य विधाता, भारत माँ की लाली थे
लोकतन्त्र की थाती थे, गांधी जी तो आँधी थे।
गांधी इरविन समझौते मे भारत का परचम लहराया था
भारत छोड़ो आंदोलन मे करो मरो का नारा था
गिरफ्तार हो कर के भी जन जन मे अलख जगाया था
हिन्दू मुस्लिम एका की खातीर, जिसने अनसन जारी की
तीस जनवरी अरतालीस को,उसी वीर ने छाती दी।
लोकतन्त्र की थाती थे, गांधी जी तो आँधी थे
जन गण मन के भाग्य विधाता, भारत माँ की लाली थे
लोकतन्त्र की थाती थे, गांधी जी तो आँधी थे।
द्वारा:- कृष्ण कुमार सिंह
लखनऊ