नमस्कार बड़े भाइयो बहनो एवं देश के युवा भविष्य,

आप सभी के राष्ट्रसेवा के जज्बे को सलाम करता हूँ। सचमुच नमस्कार करता हूँ। कोरोना जैसे महायुद्ध का खतरा विश्वव्यापी होने के साथ निश्चित रूप से बहूत लंबे समय तक हमारे धैर्य की परीक्षा लेने वाला है। क्योकि हम देश के सर्वोच्च शैक्षिक सार्वजनिक संस्थानो मे से एक बुद्धिजीवी वर्ग से संबन्धित हैं, इसलिए संकट के इस घड़ी मे हम सभी देशवासियों का सहयोग अपेक्षित है।

ये समय सरकार की आलोचना का नहीं है।स्थिति सामान्य होने पर बाद मे आलोचना कर लेंगे कि ये करना चाहिए था वो करना चाहिए था वगैरह वगैरह। बल्कि बिना परिणाम की अपेक्षा किए एक नागरिक होने के नाते पूर्ण मनोयोग से सरकार के साथ शारीरिक आर्थिक एवं मानसिक रूप से साथ होने का है। जरा सोचिए की देश के लाखो विद्यार्थी आज एवं आने वाले दिनो मे जब तक परिस्थितिया सामान्य नहीं हो जाती तब तक पढ़ाई का उनका जो नुकसान होगा उसकी भरपाई हम सभी अपनी छुट्टियो मे कर सकते हैं। हलाकी यह निर्णय स्वयं का एवं ऐकक्षिक होना चाहिए। क्योकि हमारे बच्चों के जैसे लाखो बच्चे इससे लाभान्वित होंगे एवं देश के मानव संसाधन का विकास होगा।

रही बात आर्थिक सहायता देने कि तो हम एक दिन कि सैलरी,100,200,500 कुछ भी अपने सामर्थ्य से दे सकते हैं। क्योंकि इसका लाभ उन विपन्न लोगो को मिलेगा जो इस आपदा से प्रभावित हैं। देश के मंदिरो मठो एवं दूसरे धर्मस्थलों व्यापारिक घराने जनप्रतिनिधि क्या देंगे ये उनका फैसला होना चाहिए। हमे अपने सामर्थ्य के अनुसार सिर्फ अपना कर्तव्य करना चाहिए। जैसा कि हम केरला जम्मू कश्मीर एवं बिहार की आपदा मे कर चुके हैं। जहां तक मुझे पता है कि सरकारी कर्मचारियों के वेतन से 10 प्रतिशत कि कटौती हो सकती है। लेकिन मेरे ख़याल से यह पैसा किसी नेक कार्य मे काम आ जाएगा। रही बात आर्थिक जिम्मेवारियों की तो वो कभी कम नहीं होती एवं इच्छाओ का कोई अंत नहीं होता।

अच्छी बात यह है कि हम सभी उस देश मे रहते हैं जहा पर आज तक कभी भी अनुच्छेद 360 का प्रयोग कर वित्तीय आपात की घोषणा नहीं की गई है। लेकिन इस विश्वव्यापी महामारी के खतरे को देखते हुए हम सभी का पुनीत कर्तव्य बनता की सरकार का पूर्ण सहयोग करे। मेरा पोस्ट किसी की भावना को ठेस पहुचाने का नहीं है। बल्कि इस कठिन परिस्थिति मे एक बुद्धिजीवी होने के नाते एकता,जागरूकता,सहयोग एवं एकजुटता प्रदर्शित करने के उद्देश्य से है। हम सोचते हैं कि अकेले क्या कर सकते हैं। हम सब मिल के बहुत कुछ कर सकते हैं। पूर्व के अनुभव बताते हैं की प्रथम विश्वयुद्ध एवं 1929 की आर्थिक मंदी मे भारत मे उत्पादित गेहूं एवं जमा पूंजी के रूप मे सोना ने इसे विकट आर्थिक परिस्थितियों से उबरने मे मदद दी थी। यही नहीं आज पूरा विश्व यहाँ तक कि विश्व स्वस्थ्य संगठन भी विश्व के सबसे बड़े लोकतन्त्र की ओर देख रहा है। मैंने पढ़ा है जब देश के यशशवी प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री लाल बहादुर शास्त्री के कार्यकाल मे खाद्यान संकट आया था तो उन्होने कच्छ के रन को उपजाऊ मिट्टी मे बदलकर खेती शुरू करा दी थी। यहा तक की रात मे उपवास यह कह कर करते थे कि जब हमारे कई देशवाशी रात का खाना नहीं खा रहे हैं तो हम कैसे खा सकते हैं। उनके सतत प्रयासो से भारत मे हरित क्रांति आई और भारत खाद्यान के मामले मे आत्म निर्भर हो गया। आप बार बार पूछते हैं कि राष्ट्रवाद क्या है? मेरे अनुसार सच्चा राष्ट्रवाद यही है कि इस कठिन परिस्थिति मे सरकार, प्रशासन का पूर्ण सहयोग करना और ज्यादा से ज्यादा लोगो को जागरूक करना कि अधिकतर समय घर के अंदर व्यतित कर के एकांतवास का माहौल तैयार करना जब तक कि स्थिति सामान्य ना हो जाए। विकट परिस्थिति मे बाहर निकलते समय मास्क टोपी चश्मे का प्रयोग करना एवं घर आ के सैनिटाइजर या हैंडवाश का अच्छे से इस्तेमाल करना।

धन्यवाद अपना एवं अपने घर समाज एवं देश का ख्याल रखे।

डॉ. कृष्ण कुमार सिंह

गोमती नगर, लखनऊ

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