असली लड़ाई आर्थिक मोर्चे पर है जो हमे जीतनी ही है l
नमस्कार मित्रो,
कई दिनों बाद आप सभी से इस समकालिक प्रासंगिक लेख के माध्यम से मुख़ातिब होने का प्रयास कर रहा हूँ। यह लेख पूरी तरह से आर्थिक है एवं इसमे किसी वर्ग, समूह एवं व्यक्ति विशेष को लक्षित नहीं किया गया है। अप्रैल 2020 से ही सरहद पर चीनी सैनिको का जमावड़ा एवं घुसपैठ के उनके प्रयासो को भारतीय सेना के द्वारा नाकाम कर दिया जाना वास्तव मे काबिल ए तारीफ़ है। लेकिन सरहद पर चीनी सेना का यह दुस्साहस रातो रात नहीं हुआ बल्कि इसकी पटकथा कई दिनों से वह लिखने का प्रयास कर रहा था। आइये पहले इस तथ्य पर विचार करे कि पिछले 70 वर्षो मे चीन एक आर्थिक महाशक्ति बन के कैसे उभरा।
1. चीन विश्व का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है जिसने पिछले 70 वर्षो मे अपने श्रम शक्ति का भरपूर प्रयोग किया है।
2. वहाँ राजनीतिक स्थायित्व 1950 से ही स्थापित है। सारी शक्तियाँ कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना मे निहित होती है जिसका नेता सभी प्रकार के नीति निर्माण मे निर्विरोध अपने फैसले ले सकता है।
3. श्रम कानून एकदम लचीला है या यूं कहे कि है ही नहीं। जिसमे सभी प्रकार के ट्रेड आंदोलन पर पाबंदी लगा दी जाती है एवं कारख़ाना का सिर्फ एक उद्देश्य होता है ज्यादा से ज्यादा उत्पादन।
4. गैर लोकतान्त्रिक देश होने के कारण इनके नीतियों पर न तो मीडिया न ही कोई दबाव समूह और ना ही देश कि कोई राजनीतिक पार्टी सवाल उठा सकती है।
5. इनके आर्थिक नीतियों मे कोई भी दोहरापन नहीं है। यहाँ के श्रमिक रात दिन एक कर के अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार के लिए उत्पादन करते हैं। 1949 मे जनवादी आंदोलन के उपरान्त इस देश ने किसी भी अंतर्राष्ट्रीय संगठन से सरोकार नहीं रखा और पूरी तरह से स्वदेशी एवं आत्मनिर्भरता पर ध्यान दिया।
6. यहाँ के जनसांख्यिकी संघटन मे जटिलता नहीं है जिससे ये देश एकता और भाईचारे के सूत्र से बंधा है।
7. 1949 के बाद से ही इस देश ने किसी भी बहुराष्ट्रीय कंपनी को अपने देश मे आने पर पाबंदी लगा दी।
8. बिना किसी क्रिया-प्रतृक्रिया के चुपचाप विदेशी बाज़ार खास कर के गरीब देशो के बाज़ार पर अपने प्रभाव बढ़ता रहा।
अब आप कहेंगे की उपरोक्त बिन्दुवों से एक शत्रु राष्ट्र का गुण गाण किया जा रहा है। ऐसा नहीं है। यह एक सच्चाई है जो हमे स्वीकार करनी पड़ेगी तभी हम अपने अंतर्निहित कमियों को दूर कर के आर्थिक महशक्ति बनने की दिशा मे आगे बढ़ सकते हैं।
15 जून की घटना के बाद हमने चीनी वस्तुओं एवं उसके डिजिटल एप का बहिष्कार करना शुरू कर दिया। मेरी दृष्टि मे यह एक उचित कदम है भले ही हमने पैसे देकर ही टीवी मोबाइल खरीदे हो। क्योकि हम भारतीय भावनात्मक दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील है। ये सांकेतिक बहिष्कार है जो हमे अपने तरीके से विरोध प्रदर्शन करने का अवसर प्रदान करता है। इसके हलांकी कुछ अल्पकालिक नकारात्मक परिणाम भी हो सकते हैं मसलन देश के स्टोर मे जो खरबो रुपए के चीनी समान हैं उसके नहीं बिकने पर मालिको का और व्यापारियों का लाखो करोड़ो का नुकसान हो सकता है जो कोरोना काल के बाद उभरी मंदी से उबरने का प्रयास कर रहे थे। लेकिन मैंने पहले बतया कि हम भारतीय भावनात्मक रूप से अत्यंत संवेदनशील होते हैं। इसके बावजूद की ऐसे कई व्यापारियों को करोड़ो का नुकसान होगा 20 जवानो की शहादत के बाद कई ने अपनी हाथो से चीनी सामानो को नष्ट किया। कोरोना की मंदी से गुजरने के बावजूद ट्रांसपोर्ट कंपनी के मालिको ने कहा की भूखों मर जाएंगे लेकिन चीनी सामानो को नहीं ढोएँगे।
चीन 1991 के उदारीकरण के उपरान्त आज हमारे आर्थिक गतिविधियों मे कितनी पैठ बना चुका है इसे निम्न बिन्दु से समझने की जरूररत है।
1. आज देश के आधारभूत ढांचे के विकास मे लगभग 800 से ज्यादा चीनी कंपनियाँ काम कर रही है। जिसमे एक तिहाई से ज्यादा 2013-14 के बाद आई हैं।
2. बिजली निर्माण, सड़क एवं बांध निर्माण, रियल स्टेट निर्माण, रेल परियोजना, सोलर पैनल के लिए आवश्यक मशीनरी हेतु हम प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से लगभग 40 प्रतिशत चीन के ऊपर निर्भर हैं क्योंकि उनके उत्पाद अत्यंत सस्ते हैं।
3. हमारे देश के पैरासीटामोल का साल्ट एवं वेंटिलेटर की मसीनरी तक चीन से आयात पर निर्भर है।
चीन की चुप्पी एवं चालाकी ने हाल के वर्षो मे किया क्या है?
1. चीन का सबसे घटिया काम उसके द्वारा विभिन्न देशो मे किया जाने वाला जासूसी एवं घुसपैठ।
5 जी निर्माण मे हुवेई कंपनी की कारगुजारी किसी से छुपी नहीं है। इसी कारण इस कंपनी को अमेरिका ऑस्ट्रेलिया तथा कई यूरोपिय देशो मे बन किया जा चुका है। चीन मे लगभग 25 लाख से ज्यादा हैकर मौजूद हैं जो वहाँ के सरकार के लिए कार्य करते हैं। जिसका शिकार अभी हालिया दिनो मे ऑस्ट्रेलिया हो चुका है।
2. कई पड़ोसी देश के समुद्री क्षेत्र एवं स्थलीय भूभाग मे घुसपैठ कर के इसने भू राजनीतीक परिदृश्य बदलने की कोशिश की है।
3. हमारे पड़ोस के नेपाल एवं पाकिस्तान को आर्थिक मदद एवं पैसे देकर इसने मानो उन्हे कठपुतली बना दिया है।
4. कोरोना काल के दौरान कई देशो के पूंजी बाजार मे अंधाधुंध पैसा झोका है एवं नाजुक दौर से गुजर रही कई कंपनियों का अधिग्रहण। इसका हालिया उदाहरण एचडीएफ़सी बैंक के लगभग 2 प्रतिशत शेयर पीपल बैंक ऑफ चाइना के द्वारा खरीदी गई। हलाकी बाद मे सरकार ने ऐसे किसी भी निवेश की पूर्व मंजूरी के लिए एक नौड लगा दिया।
अब सवाल यह उठता है कि ऐसी स्थिति मे किया क्या जाए? अपने किसी भी लेख मे मै सिर्फ सवाल नहीं उठाता बल्कि समाधान भी देने की कोशिश करता हूँ।
1. अच्छी बात है कि कम से कम 2024 तक केन्द्रीय स्तर पर राजनीतिक स्थायित्व है जिससे हम दीर्घकालिक फैसले ले सकते हैं। साथ मे केंद्र सरकार को जनता के बड़े वर्ग का समर्थन हासिल है एवं राज्यसभा मे भी सरकार को बहुमत प्राप्त है जिससे आर्थिक एवं सैन्य मोर्चे पर कोई दिक्कत नहीं आने वाली।
2. चीनी वस्तुवों के आयात पर हम भारी टैक्स लगा सकते हैं तब तक हम घरेलू उद्योगो को उभरने का मौका दे सकते हैं। यदि जनता का ऐसा ही सहयोग स्वदेशी को मिला तो क्रमिक रूप से 2021 तक चीन से आयात होने वाले वस्तुवों को 50 प्रतिशत से भी कम किया जा सकता है। एक उदाहरण हम पीपीई किट एवं अन्य साजो सामान का उदाहरण देख सकते हैं की कितने कम समय मे लौकडाउन के बावजूद हमारी कंपनियाँ इसे बनाने मे समर्थ हो गई।
3. अभी पूर्ण रूप से आयात एवं आर्थिक संबंधो को समाप्त करने से देश के अंदर महंगाई बढ़ सकती है। इसमे यह भी हो सकता है कि विलासी वस्तुवो के आयात पर पूर्ण प्रतिबंध के साथ अत्यावश्यक वस्तुवों का ही आया किया जाए एवं क्रमिक रूप से आत्मनिर्भरता की स्थिति मे हम आयात पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दे।
4. इसमे कोई शक नहीं की चीन ने कई देशो के नाक मे दम कर रखा है। जिसमे विएतनाम लाओस कंबोडिया ताईवान इंडोनेशिया को सैन्य शक्ति से तो अमेरिका ऑस्ट्रेलिया एवं कई यूरोपिये देशो को अपनी जासूसी से तथा अफ्रीकी एवं दक्षिण अमेरिकी देशो मे नव उपनिवेशवाद तथा कुछ पड़ोसी देशो को कठपुतली बना कर। ऐसे मे भारत को चीन विरोधी व्यूह रचना तैयार कर उसे उसकी ही नीतियों मे घेरने की कोशिश करनी होगी। एपेक के एक सम्मेलन मे जब कई देश के राष्ट्राध्यक्षों ने चीन के दादागिरि एवं समुद्री अपने समुद्री सीमाओं के अतिक्रमण का सवाल उठाया तो उसने दो टूक कहा की चीन एक विशाल देश है और हम अपनी जरूरतों के लिए ऐसे करते रहेंगे यह आप लोगो को स्वीकार कर लेना चाहिए।
5. स्वयं चीन के कई स्वायतशासी एवं अधीन क्षेत्रो मे लोकतन्त्र की स्थापना की मांग उठ रही है। ऐसे मे आए दिन कुछ भी नया सुनने को मिले तो आपको आश्चर्यचकित नहीं होना चाहिए।
6. देश की आधारभूत संरचना की मजबूती के लिए अमेरिकी एवं यूरोपिए देशो से भारी मात्रा मे पूंजीनिवेश की अवश्यकता होगी।
7. जाती, पंथ, वर्ग जेंडर मे बटकर हम कभी राष्ट्रिय विकास की बात नहीं कर सकते। सबसे पहले हम सभी सिर्फ और सिर्फ भारतीय बने फिर कुशल दक्ष कर्तव्यनिस्ठ तथा ईमानदार। क्रोनी कैपिटलिज़्म,कमीसनखोरी भ्रष्टाचार पर भी पूरी तरह रोक लगनी चाहिए।
8. आज हम विश्व के सबसे बड़े यांगिस्तान है। अर्थात विश्व की सबसे बड़ी श्रम शक्ति। इन्हे कुशल दक्ष एवं रोजगारपरक बनाने की बड़ी जिम्मेवारी है।
9. और अंत मे सिर्फ बैठ कर सरकारी पैसा खाने और बड़ी बड़ी बातों और स्लोगन से काम नहीं चलने वाला बल्कि जो जहां जिस क्षेत्र मे है वही से ईमानदारी पूर्वक कार्य करे तभी स्वदेशी आत्मनिर्भरता के बलबूते भारत निर्माण हो सकता है।
द्वारा- डॉ. कृष्ण कुमार सिंह
गोमती नगर, लखनऊ