बंसी वाले कान्हा तेरी धुन पे दुनिया वारी है
प्रेम रस बरसे बरसाने द्वारका मनहारी है
बंसी से जो होठ छू गए स्वर से बन गए गान
धरणी को मुख धारण कर दी अपनी पहचान
गोवर्धन गिरधारी वे तो बन गए सबकी जान
बने सारथी पार्थ के दे गीता का ज्ञान
बंसी वाले कान्हा तेरी धुन पे दुनिया वारी है
प्रेम रस बरसे बरसाने द्वारका मनहारी है।
– डॉ. कृष्ण कुमार सिंह